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Showing posts from July, 2017

Janiye Amba Ki Pratigya / Bhism Pitamha Ki Mratu Ka Rahasya - जानिए अम्बा की प्रतिज्ञा / भीष्म पितामह की मृत्यु का रहस्य

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अम्बा महाभारत में काशीराज की पुत्री बताई गयी हैं। अम्बा की दो और बहने थीं अम्बिका और अम्बालिका। अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर होने वाला था। उनके स्वयंवर में जाकर अकेले ही भीष्म ने वहाँ आये समस्त राजाओं को परास्त कर दिया और तीनों कन्याओं का हरण करके हस्तिनापुर ले आये जहाँ उन्होंने तीनों बहनों को सत्यवती के सामने प्रस्तुत किया ताकि उनका विवाह हस्तिनापुर के राजा और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य के साथ सम्पन्न हो जाये।जब अम्बा ने यह बताया कि उसने राज शाल्व को मन से अपना पति मान लिया है तो भीष्म ने उसे राजा शाल्व के पास भिजवा दिया। राजा शाल्व ने अम्बा को ग्रहण नहीं किया अतः वह हस्तिनापुर लौट कर आ गई और भीष्म से बोली, "हे आर्य! आप मुझे हर कर लाये हैं अतएव आप मुझसे विवाह करें।" किन्तु भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा के कारण उसके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। अम्बा रुष्ट हो गई और यह कह कर की वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी वह परशुराम के पास गई और उनसे अपनी व्यथा सुना कर सहायता माँगी। परशुराम ने अम्बा से कहा, "हे देवि! आप चिन्ता न करें, मैं आपका विवाह भीष्म के साथ करवा

A love story of Urvashi and Purvarawa in Hindi - उर्वशी और पुरुरवा की एक प्रेम कहानी हिंदी में

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उर्वशी स्वर्गलोक की मुख्य अप्सरा थी। वह देवों के राजा इन्द्र की कृपापात्र थी। वह उनके दरबार में प्रत्येक सन्ध्या नृत्य किया करती थी। वह सुन्दर थी। उसने अपना हृदय किसी को अर्पित नहीं किया था। एक बार वह तथा उसकी सखी अन्य अप्सरा, भूलोक पर भ्रमण के लिए गयीं। वहाँ एक असुर की उन पर दृष्टि जा पड़ी और उसने उनका अपहरण कर लिया।  भूलोक के एक राजा पुरुरवा ने उनका चीत्कार सुन लिया। पुरुरवा ने बिना किसी हिचकिचाहट के असुर पर आक्रमण कर दिया। अन्ततः उसने असुर को तलवार के घाट उतार दिया। उर्वशी विजेता पुरुरवा के प्रेम में पड़ गयी और पुरुरवा उस सुन्दर अप्सरा का  उसका प्रेमी बन गया। ठीक उसी समय स्वर्गलोक से एक दूत आया और उसने उर्वशी को देवराज इन्द्र का सन्देश सुनाया। इन्द्र ने उसे आज्ञा दी थी कि वह तत्काल स्वर्गलोक पहुँचकर एक विशेष नृत्यनाटिका में भाग ले। लाचार हो उर्वशी को लौट जाना पड़ा। किन्तु उर्वशी का मन नृत्य-नाटिका में न लग पाया। अनजाने में ही वह पुरुरवा को पुकार बैठी। नृत्यनाटिका के रचयिता भरत मुनि ने क्रुद्ध हो तुरन्त उसे शाप दे दिया : ‘‘तुमने मेरी नाटिका में चित्त नहीं रमाया। तुम

Know what is meaning of Vande Mataram in Hindi - जानिए क्या है वंदे मातरम का अर्थ हिन्दी में

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वंदे मातरम्‌ ।  सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्‌ स्यश्यामलां मातरम्‌ । शुभ्रज्योत्‍स्‍नापुलकितयामिनीं फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं सुखदां वरदां मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले, कोटि-कोटि-भुजैधृत-खरकरवाले, अबला केन मा एत बले । बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदलवारिणीं मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । तुमि विद्या, तुमि धर्म तुमि हृदि, तुमि मर्म त्वं हि प्राणाः शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति हृदये तुमि मा भक्ति तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदलविहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नामामि त्वाम्‌ कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम्‌ ॥  वंदे मातरम्‌ । श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां धरणीं भरणीं मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । अर्थ (Meaning) जलवायु अन्न सुमधुर, फल फूल दायिनी माँ!, धन धान्य सम्पदा सुख,गौरव प्रदायिनी माँ!! शत-शत नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! अति शुभ्र ज्योत्स्ना से, पुलकित सुयामिनी है। द्रुमदल लतादि कुस

National Song of India in Sanskrit - संस्कृत में भारत का राष्ट्रीय गीत

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वंदे मातरम्‌ ।  सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्‌ स्यश्यामलां मातरम्‌ । शुभ्रज्योत्‍स्‍नापुलकितयामिनीं फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं सुखदां वरदां मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले, कोटि-कोटि-भुजैधृत-खरकरवाले, अबला केन मा एत बले । बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं रिपुदलवारिणीं मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । तुमि विद्या, तुमि धर्म तुमि हृदि, तुमि मर्म त्वं हि प्राणाः शरीरे बाहुते तुमि मा शक्ति हृदये तुमि मा भक्ति तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ । त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी कमला कमलदलविहारिणी वाणी विद्यादायिनी, नामामि त्वाम्‌ कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम्‌ ॥  वंदे मातरम्‌ । श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां धरणीं भरणीं मातरम्‌ ॥ वंदे मातरम्‌ ।

1st Cloning In World In Hindi - जानिए दुनिया में पहली एक कोशिकीय जनन सम्सम सम्बन्धी हिंदी में

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इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर भगीरथ और श्रीराम के पूर्वज हैं। राजा सगर की 2 रानियां थीं- केशिनी और सुमति। जब दीर्घकाल तक दोनों पत्नियों को कोई संतान नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को 60 हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा। तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया  |  बाद में रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। वह सिर्फ एक बेजान पिंड था। राजा सगर निराश होकर उसे फेंकने लगे, तभी आकाशवाणी हुई- 'सावधान राजा! इस तूंबी में 60 हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में 60 हजार पुत्र प्राप्त होंगे। समय आने पर उन मटकों से 60 हजार पुत्र उत्पन्न हुए।  जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने 60 हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया।  राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड

Ganga Ka Dharti Agman in Hindi - गंगा का धरती आगमन हिंदी में

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सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हिमालय पर तपस्या कर रहे थे । वे गंगा को धरती पर लाना चाहते थे । उनके पूर्वज कपिल मुनि के शाप से भस्म हो गये । गंगा ही उनका उद्वार कर सकती थी | गंगा उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हो गई । भागीरथ ने धीरे स्वर में गंगा की आवाज सुनी । महाराज मैं आपकी इच्छानुसार धरती पर आने के लिये तैयार हूँ, लेकिन मेरी तेज धारा को धरती पर रोकेगा कौन । अगर वह रोकी न गई तो धरती के स्तरों को तोड़ती हुई पाताल लोक में चली जायेगी। भागीरथ शिव की अराधना में लग गये । तपस्या से प्रसन्न हुए शिव गंगा की धारा को सिर पर रोकने के लिये तैयार हो गये । भागीरथ के प्रार्थना करने पर शिव ने एक जटा निचोड़ कर गंगा के जल को धरती पर गिराया । शिव की जटाओं से निकलने के कारण गंगा का नाम जटाशंकरी पड़ गया । कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचकर गंगा ने भागीरथ के महाराज सगर आदि पूर्वजों का उद्वार किया । वहाँ से गंगा बंगाल की खाड़ी में समाविष्ट हुई, उसे आज गंगासागर कहते है।